शारदीय नवरात्रि का पंचवा दिन माँ स्कंदमाता (Maa Skandmata) को समर्पित है । माँ स्कंदमाता देवी दुर्गा का ही एक स्वरूप हैं। आज हम जानेंगे कि क्या है आखिर माँ स्कंदमाता का महत्व शारदीय नवरात्रि में और जानेंगे कि क्या है अर्थ माँ के नाम का। इसके अलावा आज आप जानेंगे कि कैसे करें इस नवरात्रि माँ स्कंदमाता को प्रसन्न और कैसे गायें माँ स्कंदमाता कि आरती।
माँ स्कंदमाता का महत्व और नवरात्रि का पांचवा दिन (Maa Skandmata ka Mahatva aur Navratri ka Panchva Din)
शारदीय नवरात्रि का आज का पांचवा दिन माँ स्कंदमाता (Maa Skandmata) को समर्पित है। नवरात्रि के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता कि पूजा कि जाती है। माता का यह स्वरूप मातृत्व की परिकाष्ठा है। माँ का यह नाम और यह रूप उन्हे उनके पुत्र कार्तिकेय (Kartikey) के कारण मिला है।
माँ स्कंदमाता के नाम का रहस्य : (Maa Skandmata ke naam ka rahasya)
वैसे तो माँ का हर एक रूप ही निराला है। माँ स्कंदमाता देवी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। माँ का यह स्वरूप उनको उनके पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय) के कारण मिला। ‘स्कंदमाता‘ दो शब्दो से मिल कर बना है, ‘स्कन्द‘ और ‘माता‘ अर्थात ‘स्कन्द की माता‘। । माँ का इस स्वरूप को ममता कि देवी के रूप में पुजा जाता है। माँ के इस रूप कि पूजा करने से ना केवल माँ स्कंदमता का आशीर्वाद मिलता है बल्कि उनके पुत्र भगवान करयिके का भी आशीर्वाद जातक को अपने आप ही प्राप्त हो जाता है।
माँ स्कंदमाता के स्वरूप का वर्णन: (Maa Skandmata ke roop ka varnan)
माँ स्कंदमाता कि चार भुजाएँ हैं और वे एक सिंह पर विराजमान रहती हैं। माँ के एक हाथ में एक नन्हा बालक (भगवान स्कन्द), दो हाथो में कमल का फूल और एक हाथ में अभयमुद्रा होती है। माँ के यह स्वरूप कि सबसे खास बात यह कि पहली बार माँ के हाथ में कोई शस्त्र नहीं है। हमेशा आपने देखा होगा माँ दुर्गा का कोई भी रूप हो, माता के हाथ में शस्त्र हमेशा पाया जाता है। परंतु माँ दुर्गा के इस स्वरूप में पहली बार माँ ने कोई शस्त्र धरण नहीं किया है।
माँ स्कंदमाता के स्वरूप का महत्व: (Maa Skandmata ke swaroop ka mahatva)
- माँ कि चार भुजाएँ: माँ की चार भुजाएँ हैं। उनके दो हाथों में कमल के फूल होते हैं, जो शांति और पवित्रता का प्रतीक हैं, जबकि एक हाथ अभयमुद्रा में है, जो भक्तों को निर्भयता प्रदान करता है। माँ की इतनी सारी भुजाएँ यह भी दर्शाती हैं की एक माँ कई कार्य बड़े ही सहजता से एक साथ संभाल सकती है।
- भगवान स्कंद की गोद में उपस्थिति: माँ स्कंदमाता की गोद में बालक स्कंद विराजमान हैं, जो माँ के मातृत्व और करुणा को दर्शाते हैं। स्कंद की उपस्थिति माँ की पूजन के साथ-साथ भगवान कार्तिकेय की कृपा-दृष्टि भी दिलाती है।
- सिंह की सवारी: माँ स्कंदमाता सिंह पर विराजमान रहती हैं, जो उनकी शक्ति, साहस, और संकटों से मुक्ति प्रदान करने की क्षमता को दर्शाता है।
- पवित्रता और शांति: माँ का रंग श्वेत (धवल)(White) होता है, जो उनकी दिव्यता, पवित्रता और शांति का प्रतीक है। यह बताता है कि उनकी पूजा करने से जीवन में शांति और प्रकाश आता है।
- अभयमुद्रा: उनका एक हाथ अभयमुद्रा में होता है, जो उनके भक्तों को हर भय से मुक्ति और सुरक्षा का आशीर्वाद प्रदान करता है।
नवरात्रि के पांचवे दिन का रंग – सफेद (Navratri ke Panchve Din ka Rang – Safed)
नवरात्रि के पांचवे दिन को माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इस दिन का रंग सफेद होता है, जो शांति, पवित्रता और शुभता का प्रतीक है। सफेद रंग मन को शांति और आत्मिक शुद्धता का अनुभव कराता है। इस दिन सफेद वस्त्र धारण करके देवी की आराधना करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और शक्ति प्राप्त होती है।
माँ स्कंदमाता अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और उन्हें समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। सफेद रंग के वस्त्र पहनकर माता की पूजा करने से जीवन में संतुलन, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
सफेद रंग क्यों?
नवरात्रि के पांचवे दिन सफेद रंग का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दिन माँ स्कंदमाता को समर्पित है, जो प्रेम, ममता और शांति की प्रतीक मानी जाती हैं। सफेद रंग को पवित्रता, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। जब हम नवरात्रि के इस दिन सफेद वस्त्र धारण करते हैं, तो यह हमारे मन और आत्मा को शुद्ध करने का प्रतीक होता है, जिससे हम माँ स्कंदमाता की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
माँ स्कंदमाता का मंत्र (Maa Skandmata ka Mantra)
माँ स्कंदमाता की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह भक्तों को आंतरिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है:
ॐ स्कन्दमातायै नमः॥
इस मंत्र का उच्चारण श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से माँ स्कंदमाता का आशीर्वाद मिलता है। वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का संचार करती हैं। नवरात्रि के पांचवें दिन इस मंत्र का जाप विशेष रूप से शुभ माना गया है, क्योंकि यह दिन माँ स्कंदमाता को समर्पित है, जो प्रेम, करुणा, और ममता की प्रतीक हैं।
माँ स्कंदमाता की आरती (Maa Skandmata ki Aarti)
जय स्कंदमाता, जय जय माता। पाँचवे नवरात्रे तेरा ही गुण गाता॥ जय स्कंदमाता, जय जय माता। पाँचवे नवरात्रे तेरा ही गुण गाता॥ ब्रम्हाणी, रुद्राणी तुम कमला रानी। अगणित सुंदर, भगवती भवानी॥ सुर-नर मुनि जन, सब मिल गुण गाता॥ जय स्कंदमाता, जय जय माता॥ तेरी ज्योत जलाता रहूँ दिन रात। तेरी पूजा में ध्यान लगाता॥ स्कंद के संग बाल गोद में झूलाती॥ जय स्कंदमाता, जय जय माता॥ पाँचवा तेरा रूप निराला। सकल जगत में तू ही पालनहारा॥ तेरा महिमा कोई नहीं जाने। जो कोई जाने वो कभी न बिछड़े॥ जय स्कंदमाता, जय जय माता॥
माँ स्कंदमाता की कथा (Maa Skandmata ki Katha)
माँ स्कंदमाता के जन्म और शक्ति की कथा (Maa Skandmata ke janma aur shakti ki katha)
माँ स्कंदमाता का संबंध भगवान कार्तिकेय से है, जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है। देवी दुर्गा के इस रूप को उनकी ममता और करुणा के लिए जाना जाता है। जब देवताओं को एक शक्तिशाली असुर तारकासुर से मुक्ति की आवश्यकता पड़ी, तो उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उनका एक ऐसा पुत्र हो, जो तारकासुर का वध कर सके। इसी कारण से माँ पार्वती ने भगवान कार्तिकेय को जन्म दिया।
माँ स्कंदमाता का नाम उनके पुत्र स्कंद (कार्तिकेय/मुर्गन) के कारण पड़ा, जिन्हें युद्ध और शक्ति का देवता माना जाता है। माँ अपने इस रूप में चार भुजाओं वाली हैं, जिनमें से दो हाथों में कमल के फूल हैं, एक हाथ में भगवान स्कंद को गोद में उठाए हुए हैं, और चौथा हाथ वर मुद्रा में होता है, जिससे वह अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
देवताओं को तारकासुर से मुक्ति दिलाने की कथा
तारकासुर एक ऐसा असुर था, जिसने अपनी शक्ति और तपस्या से देवताओं को परास्त कर दिया और तीनों लोकों में अत्याचार फैलाया। उसे वरदान था कि केवल शिवजी का पुत्र ही उसका वध कर सकता है। लेकिन भगवान शिव उस समय एक वैरागी का जीवन व्यतीत करते थे, और उनका विवाह नहीं हुआ था।
देवताओं की प्रार्थना पर माँ पार्वती (आदिशक्ति) ने कठोर तपस्या की और शिवजी से विवाह किया। इसके बाद भगवान कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने बड़े होकर तारकासुर का वध किया और देवताओं को मुक्त किया।
भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को माँ स्कंदमाता का आशीर्वाद
माँ स्कंदमाता अपने पुत्र स्कंद को शक्ति और साहस का आशीर्वाद देती हैं। उन्होंने अपने पुत्र को अपार शक्ति दी जिसके कारण वे युद्ध में विजय हो गए और तारकासुर का वध करने में सक्षम रहे। इसी कारण जो भक्त माँ स्कंदमाता की पूजा करते हैं, उन्हें न केवल माँ का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि भगवान कार्तिकेय की कृपा भी प्राप्त होती है।
माँ स्कंदमाता की पूजा से भक्तों को उनके जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा की प्राप्ति होती है।
माँ स्कंदमाता और विशिष्ट भोग (Maa Skandmata aur Vishisht Bhog)
माँ स्कंदमाता को नवदुर्गा के पांचवें रूप में पूजा जाता है और उनके भक्त उन्हें ममता और करुणा की देवी के रूप में मानते हैं। मातारानी की पूजा में भोग का विशेष महत्व होता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि विशिष्ट भोग चढ़ाने से माँ जल्दी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को अपनी कृपा प्रदान करती हैं।
माँ स्कंदमाता का प्रिय भोग (Maa Skandmata ka priy bhog)
माँ स्कंदमाता को सफेद रंग बहुत प्रिय है, जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है। इसलिए, माँ को सफेद रंग के भोग चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- मालपुआ: माँ स्कंदमाता को विशेष रूप से मालपुआ का भोग लगाया जाता है। यह माना जाता है कि इससे भक्तों को ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
- दूध और दूध से बनी मिठाई: माँ को दूध और इससे बनी मिठाइयाँ जैसे कि खीर, रबड़ी, मिल्ककके, बर्फ़ी बहुत प्रिय हैं। इस भोग को चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
- नारियल: नारियल को भी माँ के चरणों में अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसे माँ के प्रति सम्मान और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
भोग चढ़ाने का महत्व
माँ स्कंदमाता की पूजा में शुद्धता और सादगी का विशेष ध्यान रखा जाता है। सफेद वस्त्र धारण कर, सफेद फूल और सफेद मिठाइयों के भोग से माँ को प्रसन्न करना बहुत ही शुभ माना गया है। यह माना जाता है कि माँ को सफेद भोग चढ़ाने से जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही, माँ का आशीर्वाद उनके भक्तों को मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
निष्कर्ष: माँ स्कंदमाता की कृपा से जीवन में परिवर्तन (Nishkarsh: Maa Skandmata ki Kripa se Jeevan mein Parivartan)
माँ स्कंदमाता की पूजा-आराधना करने से भक्तों को जीवन में शांति, समृद्धि और साहस का अनुभव होता है। उनकी ममता और करुणा की छांव में, भक्त अपनी सभी चिंताओं को भुल जाता हैं। जब कोई भी श्रद्धा के साथ माँ की पूजा करता है, तो वह न केवल माँ का आशीर्वाद प्राप्त करता है, बल्कि उसे भगवान स्कन्द का भी आशीष मिलता है।
माँ स्कंदमाता का आशीर्वाद पाने से मनुष्य जीवन की हर चुनौती का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सकते हैं। इस नवरात्रि, माँ की आराधना करते समय सफेद रंग के भोग और वस्त्रों का विशेष ध्यान रखें, जिससे माँ को प्रसन्न किया जा सके।